पुत्र,
भाई,
सखा,
पति,
पिता,
कर्मी
और ना जाने क्या क्या बन गया
मैं,
अब
मैं अपना स्वाभाविक स्वरुप
पाना चाहता हूँ ,
मैं
फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ।
चाँद
जो एक खगोलीये पिण्ड है,
पता
है मुझे,
मामा
कहना और उसकी कहानियां सुनना
चाहता हूँ ,
मैं
फ़िर से ...
निडरता
का जामा पहन,
अपना
डर छुपाता हूँ मैं,
अंधेरे
में,
पापा
की ऊँगली कस कर पकड़ना चाहता
हूँ,
मैं
फिर से …
मकान
बना लिया ,घर
की तलाश है,
मिट्टी
के घरौंदे मे घर घर खेलना चाहता
हूँ ,
मैं
फिर से …
मम्मी से पैसे लेकर, मैं चुस्की चूसना चाहता हूँ,
मैं फिर से …
जीवन
की दौड़,
चूहा
दौड़,
कहीं
बैठ कर ,
सुस्ताना
चाहता हूँ,
मैं
फिर से …
संतोषम्
परम सुखम् का पाठ पढ़ लिया मैने,
मैं
फिर से …
हर
पल यह चिंता है,
गिर
न जाऊं कहीं,
मिट्टी
में एक बार फिर से लोटना चाहता
हूँ,
मैं
फ़िर से बच्चा बनना चाहता हूँ।
अनुरोध
'सन्दर्भ'
बहुत खूब
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