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रविवार, अक्टूबर 19, 2014

मैं जेल में हूँ।

हम में  से बहुत लोग इस सत्य से अनजान हैं कि, इस जीवन का चुनाव हमने किया है।  आत्मा की यात्रा हमने चुनी है और, हम और सिर्फ हम ही सभी अनुभवों के लिए उत्तरदायी हैं।  हम ही अपने आप का अनुभव बदल सकते हैं, जो हमारी अजर अमर आत्मा का सच्चा सात्विक स्वरुप पहचानने मे सहायक होगा और,  पुनः हमको हमारे  निर्मल स्वरुप से एकाकार कर के हमको उच्चतम  आनंद की प्राप्ति कराएगा ।
इस कविता मे इस भाव को ही व्यक्त किया है।

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मैं बंद हूँ एक जेल में, जिसे मैने ही चुना है,
मैं ही अपराधी हूँ, एक जघंन्य अपराधी,
जो अपराधी है अपने प्रति, अनगिनत अपराधों का।   

मैं ही न्यायाधीश हूँ,  कठोर भावना शून्य न्यायाधीश,
आँखों पर पट्टी बाँध कर, कठोर दंड सुनाता है जो,
जन्म जन्मान्तर के लिए,  अपराध के लिए।

मैं ही जेलर हूँ इस जेल का, कठोर हृदय और कर्तव्यपरायण,
जानता है जो पालन कराना  दंड का, हर हाल में,
कठोर, निर्मम, भाव शून्य हो कर।



अनगिनत अपराध, अनगिनत दंड, जन्म जन्मान्तर की जेल,
करना चाहता हूँ क्षमा याचना, न्यायाधीश से,
आना चाहता हूँ बाहर, स्वतन्त्र होना चाहता हूँ मैं।





न्यायाधीश कुछ पिघला है, मुझे फिर से सुन रहा है,
कई दंड पूरे हो गए हैं, कई पर सुनवाई हो  रही है,
हर पूरे दंड के लिए, जेलर मुझको थोड़ी स्वतंत्रता  प्रदान करता  है, जेल मे घूमने की।


जेलर  ने बताया मुझको,  सभी दंड  होंगे पूरे,
स्वत्रन्त्र हो जाओगे तुम, भरोसा रखो, तुम अपील करते रहो, हार मत मानो
 न्यायाधीश तुमको प्यार करता है, वह क्षमा कर देगा तुमको, हर अपराध के लिए।


दीपावली के पावन पर्व पर ईश्वर से प्रार्थना करें की कर्म रुपी जेल से हमारी आत्मा को मुक्ति मिले।
दीपावली आप एवं आपके समस्त परिवार के लिए शुभ हो। 






अनुरोध "सन्दर्भ"
www.astro-healer.in







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