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बुधवार, अप्रैल 22, 2015

शहर इसकी इजाज़त नहीं देता...


हमारे शहर और गाँव के नाम चंद पंक्तियाँ...


आसमां का रंग चुनूँ , ताज़ा हवा में सांस लूँ,
पर शहर इसकी इजाज़त नहीं देता।

अपनी मासूमियत बरक़रार रखूं , इंसानियत को जियूं,
पर शहर इसकी इजाज़त नहीं देता।

हर शख्श को दोस्त बनाऊं, दिल से दिल मिलाऊँ,
पर शहर इसकी इजाज़त नहीं देता।

दौड़ रहा है सुबह से शाम तक, रुक कर देख ले दिशा अपनी,
पर शहर इसकी इजाज़त नहीं देता।

सब बोल रहे हैं , कोई तो सुने किसी को,
पर शहर इसकी इजाज़त नहीं देता।

जो छोड़ कर चले गए, याद कर उनको कुछ दिन रो  लूँ 'सन्दर्भ',
पर शहर  इसकी इजाज़त नहीं देता।

जमीं जो छोड़ कर आ गए गांव में, वापस मुड़ कर चल दूँ उस ओर,
पर गाँव इसकी इजाज़त नहीं देता।

अनुरोध 'सन्दर्भ'

मंगलवार, अप्रैल 14, 2015

मैं फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ।

पुत्र, भाई, सखा, पति, पिता, कर्मी और ना जाने क्या क्या बन गया मैं,
अब मैं अपना स्वाभाविक स्वरुप पाना चाहता हूँ ,              
मैं फिर से बच्चा बनना चाहता हूँ।

चाँद जो एक खगोलीये पिण्ड है, पता है मुझे,
मामा कहना और उसकी कहानियां सुनना चाहता हूँ ,
मैं फ़िर से  ...

निडरता का जामा पहन, अपना डर छुपाता हूँ मैं,
अंधेरे में, पापा की ऊँगली कस कर पकड़ना चाहता हूँ,
मैं फिर से …

मकान बना लिया ,घर की तलाश है,     
मिट्टी के घरौंदे मे घर घर खेलना चाहता हूँ ,
मैं फिर से …

पैसे हैं बटुए मे मेरे, चीजे खरीद लेता हूँ,
मम्मी से  पैसे लेकर, मैं चुस्की चूसना  चाहता हूँ,
मैं फिर से   …

जीवन की दौड़, चूहा दौड़,
कहीं बैठ कर , सुस्ताना चाहता हूँ,
मैं फिर से …

संतोषम् परम सुखम् का पाठ पढ़ लिया मैने,
फिर एक बार उस खिलोने के लिए मचलना चाहता हूँ,
मैं फिर से …

हर पल यह चिंता है, गिर न जाऊं कहीं,
मिट्टी में एक बार फिर से लोटना चाहता हूँ,      
मैं फ़िर से बच्चा बनना चाहता हूँ।

अनुरोध 'सन्दर्भ'